हमारी संस्कृति हमारी धरोहर है , सनातन धर्म हमारी आस्था है और वेद-पुराणों की वाणी हमारे जीवन का अवलंबन है । अपनी संस्कृति को संजोए रखना हमारी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । यह कार्य हमारे देश की महिलाएं पूरी आस्था , श्रद्धा और विश्वास के साथ कर रही हैं । यही हमारी सनातन संस्कृति है … नरेश कुमार एरेन
हमारी सनातन संस्कृति दुनिया की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है । दुनिया की तमाम सभ्यताएं हमारी पुरातन संस्कृति से पल्लवित और पुष्पित हुई हैं । गीता , वेद और पुराणों की आस्था , श्रद्धा और विश्वास पर टिका हमारा समाज और देश प्रेम , बंधुत्व , सौहार्द और परंपरा का अद्भुत संगम है । अनेकता में एकता समेटे हुए हमारे देश में पूरे वर्ष विभिन्न त्योहारों का आयोजन पूरे हर्षोल्लास के साथ किया जाता । श्लोकों और मंत्रोच्चारण से गूजती दिशाओं का दृश्य अनुपम और अलौकिक होता है । भारत त्योहारों का देश है , त्योहारों की एक लम्बी फेहरिस्त में हरियाली तीज एक ऐसा व्रत है जो विशेषतः सुहागिन स्त्रियों के लिए है । हरियाली तीज का यह व्रत सुहागिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और उनके सुखी जीवन की कामना के लिए रखती हैं । हरियाली तीज का यह उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है । यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है , सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है । ऐसी मान्यता है कि आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है । प्रकृति में चारों तरफ हरियाली होने के कारण इस पर्व को हरियाली तीज कहते हैं । इस त्यौहार पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं , खुशियां मनाती हैं और एकसाथ मिलकर भजन गाती हैं । हरियाली तीज में महिलाएं पूरा दिन निराहार और निराजल यानि बिना भोजन और जल के ग्रहण किए रहती हैं । और दूसरे दिन ऊषाकाल में स्नान और पूजा के बाद व्रत का समापन करती हैं ।
सावन की हरियाली तीज का पौराणिक महत्त्व भी रहा है । एक धार्मिक किवदंती के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए इस व्रत का अनुष्ठान किया था और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ही माता पार्वती के 108 वें जन्म के बाद भगवान शिव वरदान स्वरुप माता पार्वती को पति के रुप में प्राप्त हुए थे। इसी मान्यता के अनुसार स्त्रियां माँ पार्वती का भी पूजन करती हैं। इस पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप किया था :
हे गौरीशंकर अर्धांगी
यथा त्वां शंकर प्रिया।
तथा माम कुरु कल्याणी कान्तकांता सु दुर्लभम।।
वर्तमान समय में भी कुंवारी लड़कियां मनचाहे और योग्य वर की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जाप करती हैं ।
हरियाली तीज का सबसे बड़ा प्रभावशाली गुण यह कि यह व्रत मन में क्रोध को नहीं आने देता। सभी व्रती महिलाएं बेहद गंभीर तथा आस्था और श्रद्धा में लीन रहती हैं । इस त्यौहार पर महिलाएं अपने हाथों में मेहंदी रचाती हैं। महिलाओं को शांतचित्त रखने में मेंहदी का औषधीय गुण की अत्यंत सहायक होता है। इस व्रत में सास और परिवार के बड़े सदस्य नव विवाहित महिलाओं को वस्त्र , हरी चूड़ियां, श्रृंगार सामग्री और मिठाइयां भेंट करती हैं। इसका अभिप्राय यह होता है कि दुल्हन का श्रृंगार और सुहाग हमेशा बना रहे और वंश की वृद्धि हो।
हरियाली तीज का त्यौहार भारत के कोने-कोने में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है । यह त्यौहार भारत के उत्तरी क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । सावन का आगमन ही इस त्यौहार के आने की आहट है । ऐसा लगता है कि समस्त सृष्टि सावन के अदभूत सौंदर्य में भिगी हुई सी नज़र आती है । इन दिनों सुहागिन स्त्रियों के हाथों में रचि मेंहंदी की तरह ही प्रकृति पर भी हरियाली की चादर सी बिछ जाती इस न्यनाभिराम सौंदर्य को देखकर मन में स्वत: ही मधुर गीत बजने लगती है और हृदय पुलकित होकर नाच उठता है । चूंकि यह समय वर्षा का होता है लिहाजा वर्षा ऋतु की बौछारें प्रकृति को पूर्ण रूप से भिगो देती हैं । इस समय प्रकृति में हर तरफ हरियाली की चादर सी बिछी होती है और शायद इसी कारण से इस त्यौहार को हरियाली तीज कहा जाता है । देश के पूर्वी इलाकों में लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं । इस समय प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित हो जाता है ।
अपने सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिये सुहागिन स्त्रियों द्वारा मनाया जाने वाला यह व्रत घर-घर में अपार खुशियां लेकर आता है । यह व्रत पूरे दिन उपवास रह कर भगवान शंकर और माता पार्वती की बालू से मूर्ति बनाकर षोडशोपचार पूजन किया जाता है जो रात्रि भर चलता है । सुंदर वस्त्र धारण किये जाते है तथा कदली स्तम्भों से घर को सजाया जाता है । इसके बाद मंगल गीतों से रात्रि जागरण किया जाता है । इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को पार्वती के समान सुख प्राप्त होता है ।
हरियाली तीज का यह व्रत सिर्फ सुहागिन स्त्रियों के लिए ही श्रेयस्कर नहीं है अपितु यह हमारी पुरातन संस्कृति और सभ्यता को जीवन्त रखने का मार्ग भी है । आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य के पास अपनी संस्कृति और सभ्यता को संजोकर रखने का समय नहीं है । शहरों की बेहताशा भीड़-भाड़ और भाग-दौड़ भरी जीवनशैली में अपनी इतिहास के पन्ने पलटने का समय किसी के पास नहीं है । जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पुरानी संस्कृति को संजोए रखने का जज्बा आज भी कायम है । तीज-त्योहार पर जो हर्षोल्लास गांव में देखने को मिलता है वह रौनक शायद शहरों से गायब है । आज की पीढ़ी यह भूल गई है कि सौम्यता, विनम्रता और सौंदर्य अपनी पुरानी संस्कृति और सभ्यता में ही निहित है । तीज-त्योहार का आना और उनका अनुष्ठान करना सिर्फ आस्था , श्रद्धा , विश्वास और भक्ति के लिए ही नहीं है बल्कि इन तीज-त्योहार के आधार पर ही हमारी संस्कृति टिकी है । तीज-त्योहारों को नियमित रूप से मनाया जाना हमें हमारी सनातन धर्म और संस्कृति की याद दिलाता है । अपनी संस्कृति को जीवंत रखने का तीज-त्योहार एक सशक्त माध्यम है और हमारे देश की महिलाएं इन धार्मिक प्रथाओं का अनुष्ठान कर इसे सजीव रखी हुई हैं । सामाजिक स्थिरता और सुख-शांति के लिए भी व्रत और तीज-त्योहारों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
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